शब्द के भी
इंद्रधनुषी पंख होते हैं
उड़ रहे हैं अब नए आकाश तक
आनंदवादी।
नाचते हैं, गुनगुनाते हैं,
दूर जाकर लौट आते हैं
गाँव, नगरों और देशों से
नए रिश्ते जोड़ लाते हैं
कभी स्नेहिल हैं, कभी वे मनचले
अलगाववादी।
हर गली के मोड़ पर
ये ही खड़े हैं
आदमी की जिंदगी से
ये बड़े हैं
महल में ये, झोपड़ी में, हर कहीं ये
सर्वव्यापी।
ये सभी के हैं
किसी के हो नहीं सकते
सब जगह होकर
कहीं ये खो नहीं सकते
सृजन हो या ध्वंस जग में, ये हैं
अविनाशी।
पालते हैं पोसते हैं
प्रेम को, अनुराग को
चिनगियों के गाँव जाकर
बो रहे विश्वास को
लिख रहे ये कभी गीता या कुरान
सत्यवादी।